काहे मुसकाए कान्हा, काहे मुसकाए
तेरी पिचकारी का रंग चूनर से न जाए
काहे मुसकाए कान्हा, काहे मुसकाए
लाख जतन कर राधा जो हारी
काहे यूँ हस-हस के छेड़े मुरारी
प्रेम की छबी तेरे अधरों पे छाए
काहे मुसकाए कान्हा, काहे मुसकाए
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2 comments:
khup chaan ahe...swar baddha kar na hyala....mala te tujhya awazat imagine hotay clearly!
Khoop god aahe.. did you write it?
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